एक प्रत्याशी का दर्द, और जनता की सहानुभूति
डा.अशोक अग्रवाल का छह वर्ष बसपा में वनवास ख़त्म हुआ और सपा ने आंसू भी पोछ दिये, अब जनता की भी सहानुभूति लाजमीय है सर्व समाज की सहनुभूति भी काविले तारीफ रही उम्मीद के मुताविक वोटो का प्रतिशत कम होना शुभ संकेत है, पर इस धुरी में भाजपा से प्रत्याशी रहे डा.देवेन्द्र कुमार शर्मा मतदान के आधार पर डा. अशोक के लिए सिरदर्द जरुर है ।
आज से छह वर्ष पूर्व बसपा पार्टी ने डा.अशोक अग्रवाल को एक ताकत के रूप में पार्टी में शामिल किया और मथुरा-वृन्दावन विधान सभा छेत्र से वादे के मुताविक टिकट भी दिया और बिना पूछे टिकट काट कर प.देवेन्द्र गोतम को दे दिया इस दंश को झेला और पार्टी के फैसले को स्वीकार भी किया । पार्टी के लिए पांच वर्ष निस्वार्थ कार्य भी किया फिर एक बार बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा इस बार भी डा.अशोक से काट कर वृन्दावन की चेयरमैन पुष्पा शर्मा को दे देने से डा.अशोक आहत हो उठे और समाजवादी का दामन थाम लिया । अब जनता ने डा.अशोक अग्रवाल के साथ कितनी सहानुभूति निभायी ये तो वक्त ही बतायेगा- आमीन
कुर्सी की चाह में हम छह वर्ष तक रोते रहे,
बेवफा वो निकले बदनाम हम होते रहे,
कुर्सी की मदहोशी का आलम तो देखिये,
धूल चेहरे पर थी और आईना हम धोते रहे,
नरेन्द्र एम.चतुर्वेदी
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