बुधवार, 13 जनवरी 2010

.तो ये है शक्कर का चक्कर


पिछले एक महीने में शक्कर के भाव जमीन से आसमान तक पहुंच गए हैं। 2009 के आखिरी दिन 31 दिसंबर को दिल्ली में इसके दाम 36 रुपये प्रति किलो थे, लेकिन इसके बाद खाद्य मंत्री शरद पवार के बयान ने ऐसा कमाल दिखाया कि ठीक एक हफ्ते बाद 7 जनवरी को शक्कर का भाव 43 रुपये पर पहुंच गया, आज इसका खुदरा मूल्य 50 रुपये प्रति किलो आ गया है। जाहिर है रोजमर्रा के खान-पान में आने वाली चीनी के दामों में लगी इस आग ने आम आदमी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। सबसे ज्यादा आश्चर्य तो इस विभाग के केंद्रीय मंत्री शरद पवार के बयान पर होता है कि आम आदमी की सरकार होने का दावा करने वाले लोग कैसे-कैसे संवेदनहीन बयान देते है।

केंद्र सरकार जहां इस महंगाई के लिए चीनी के घटते उत्पादन को कारण बता रही है, वहीं राज्य सरकार कच्ची चीनी के आयात पर लगी रोक की दुहाई दे रही हैं। जिन-जिन कारणों की दुहाई सरकार दे रही है, वह सभी दिसंबर में भी मौजूद थे, लेकिन तब यह आग नहीं लगी थी। असल में इसके पीछे का मामला कुछ और ही है। आइए, आज हम आपको बताते हैं कि शक्कर के बढ़े दामों का आखिर क्या है चक्कर..:

सरकार के दिए गए तर्क इसलिए जायज नहीं लगते, क्योंकि गन्ने की पेराई का समय जनवरी से फरवरी के बीच होता है। इस लिहाज से चीनी के दामों में कमी आनी चाहिए थी। असल में खाद्य मंत्रालय हर महीने तय करती है कि देश में कितनी चीनी बिक्री की जाए। 30 दिसंबर को मंत्रालय ने ऐलान किया था कि जनवरी में केवल 16 लाख टन चीनी की सेल की जाएगी। जनवरी और फरवरी शादियों और त्योहारों का सीजन होता है, ऐसे में चीनी की मांग भी ज्यादा होती है। जाहिर है इसका पूरा फायदा कारोबारियों ने उठाया और चीनी के दाम आसमान पर पहुंच गए। पिछले एक साल में दोगुने हो चुके चीनी के दाम पर सरकार ने लगाम लगाने की बजाए सप्लाई घटाकर और मांग बढ़ाकर आग में घी का काम कर दिया।

महंगी चीनी के पीछे रेलवे का भी पूरा योगदान रहा है। पिछले कुछ महीनों से रेलवे ने देश के पूर्वी इलाकों में खुले बाजार वाली चीनी की ढुलाई हल्की कर दी है। रेलवे का तर्क है कि वहां दूसरी कमोडिटी पहुंचाना ज्यादा जरूरी है। रेलवे के इस रवैये से कोलकाता की मुसीबत बढ़ गई। कोलकाता चीनी का बड़ा मार्केट है और यहां हर महीने 30 रेक चीनी की जरूरत होती है। इसी तरह नॉर्थ-ईस्ट में हर महीने दो लाख टन चीनी की खपत होती है। कोलकाता और नॉर्थ-ईस्ट के राज्य पूरी तरह से महाराष्ट्र से आने वाली चीनी पर निर्भर हैं।

जनवरी और फरवरी के महीनों में चीनी का उत्पादन अपने चरम पर होता है, लेकिन इस दौरान इंपोर्टेड कच्ची चीनी भी हल्दिया पोर्ट पर कम आई है। इसकी वजह साफ है, कीमतों में अंतर के चलते इंपोर्टर्स भी चीनी मंगाने से डर रहे हैं। हालांकि सबसे बड़ी खामी खाद्य मंत्रालय की है। कुछ महीनों पहले जमाखोरी पर लगाम लगाने के लिए कुछ राज्यों ने अपने यहां स्टॉक लिमिट लागू की थी, लेकिन उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि देश में कुल चीनी का वन बाई फोर्थ पार्ट उत्पादन करने वाले महाराष्ट्र और यूपी से इसकी सही और जरूरी सप्लाई तय की जाए, ताकि देश भर के लोगों को सस्ते रेट पर चीनी मिल सके।

सिर्फ एक महीने का कोटा

सरकारी गोदामो में इस समय सिर्फ एक महीने की शक्कर बाकी है, जिससे आने वाले दिनों में शक्कर की किल्लत के अलावा इसकी कीमतों में भी और इजाफा हो सकता है। यह पहला मौका है कि चीनी के स्टॉक में सिर्फ एक महीने का कोटा है, क्योंकि इससे पहले स्टॉक में तीन महीने की चीनी रखी जाती थी। चीनी के प्रोडक्शन के लिए उपयुक्त महीनों के दौरान महाराष्ट्र में पहले के साल की तुलना में साठ हजार टन कम प्रोडक्शन हुआ है, जबकि यूपी में 10 हजार टन कम प्रोडक्शन हुआ। [जागरणडॉटकाम]

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