रविवार, 18 दिसंबर 2011

   
                    एक आगाह -    संस्कृति से खिलवाड़ शोक, जरुरत...या..मज़बूरी....?


वर्तमान में दिनों दिन बड़ते अपराधो ने एक बार फिर आम जनमानस को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या वह अपराधो से अपनों को बचा पायेगा ? देश के हालत जिस तेजी से बदल रहे है उन से तो यही संकेत मिल रहे है कि आम आदमी असुरक्षित होता जा रहा है! खास तोंर पर लड़किया एवं बच्चे जो आसानी से शिकार बन जाते है !
             एक सर्वेक्षण के अनुसार युवतियों के प्रति लोगो का नजरिया बदलता जा रहा है! चैनल संस्कृति ने उसे भोग की वस्तु प्रचारित कर उसकी गरिमामय छवि को पूरी तरह नष्ट कर दिया है, वही महिलाए भी अंग प्रदर्शन करने से और कामुक दिखने से वाज नहीं आ रही है और सीधे तोर पर आमंत्रित कर रही है उन गट्नाओ को और अनहोनी को जिनसे उन्हें स्यम बचना चाहिए, उसी दिशा की ओर मुड़ रही है इस स्थति में अपराधी प्रेरित होता है ओर अपराध करता है जाहिर सी बात है, खुद पर नियंत्रण नहीं तो अगला आपको देख कर अन्यन्त्रित ही होगा रहा सवाल यहाँ पर दोष देने या मढ़ने का तो सामने वाला दूसरे को ही दोषी पाता है कानून भी वही देखता है ओर समझता है जो उसे दिखाया जाता है ? चाहे हालात जो भी रहे हो यहाँ बहस में न पड़कर फिलाल हम असली मुद्दे पर एक बार फिर केन्द्रित होते है! मानवीय सम्वेदना की बात है तो वह खी गम सी दिखाई पड़ रही है आज-कल बच्चे भी हवस का शिकार हो रहे है ओर बदनाम बस्तियो के अन्दर उनका भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है ? अबोध के साथ क्रतग्य करके लोग इंसानियत को कलंकित कर रहे है!
बाल अपराधो का बड़ता ग्राफ यही दर्शाता है कि इन्सान कामांध होकर अपनी सुधबुध खो बेठता है ओर समाज को कलंकित कर रहे है !
महानगरो में व्याप्त पश्चिम संस्कृति की चाशनी ओर स्वतंत्ता तथा वेहुदगी की हदे पार करती युवा पीडी ख़ास तोर पर नवयोवनाये खुलेआम जब सब कुछ करने को आमन्त्रण देने लग रही हो ओर सरेआम शर्मिंदा करने लग जाये तो कहने को कुछ नहीं रह जाता !
इन युवतियों ने पैसे की खातिर एश-मोज हेतु सेक्स रिलेशनशिप का आफर करना आरम्भ कर एक नया सन्देश देना आरम्भ किया है! जो इस बात का घोतक है कि पैसा मिल जाये तो शरीर भी न्योछावर है भले इससे संस्कृति ओर सामाजिक मूल्य नैतिकता पूरी तरह कुचल रही है! पर्स में नोटों की गड्डिया होनी चाहिए पार्टी, मोज, मस्ती महगे मोबाईल वाय फ्रेंड्स के साथ लाग ड्राइव या होटलों में गुजरती राते इनमे कमी नहीं चाहिए क्योकि धनार्जन जरिया और आधार भी यही है !
यहाँ एक बात और है जो बड़ी महत्पूर्ण है इन सब गताविधियो की संलिप्तता को बढावा देने वाले ग्रुप, रेकेट और उनके सदस्य जो लेडिज होस्टल, कालेज, स्कूलों के ऊपर पूरा-पूरा ध्यान रखते है और ऐसी किशोरियों, छात्राओ एवं युवतियों को इस बिजनिस के लिए प्रेरित करने का कार्य बड़े पैमाने पर कर रहे है! यंहा इनकी आवश्यकता के अनरूप उम्र के हिसाब से माल मिल जाता है! और राजी या गैर राजी उनकी ब्लू फिल्म, अश्लील तस्वीरे उतर कर ब्लैक मेल किया जाता है और मजबूर किया जाता है! महानगरो की तर्ज पर होस्टल रेस्तराओ एवं पाश कालोनियों तक बात सीमित हो तो भी टीक है किन्तु यह आलम छोटे-छोटे शहरों में भी दिखाई दे रहा है! और संस्कृति इन शहरों में भी दस्तक दे चुकी है! किसी देश संसकृति एवं समाज के लिए इससे अधिक घातक स्थति   क्या होगी कल्पना कीजिए क्योंकि यह नियंत्रण की सारी सीमाएं लाँघ कर पूरी मूँछ काडे सामने खड़ी हो गयी है! एक ज्वलंत एवं गंभीर समस्या बनकर निश्चित तोंर पर इसके बारे मे सोचना होगा ! क्या संस्क्रती,खिलवाड़ शोंक है.....जरुरत या मज़बूरी .........?
                                        नरेन्द्र एम. चतुर्वेदी -
                                       www.samaysapeksh.com

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