
शनिवार, 8 मई 2010
तुगलकी फरमान से लाखो बी ऐड अभ्यर्थी को भारी मानसिक अघात

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010
गुरुवार, 25 मार्च 2010
उपन पुनः जिलाध्यक्ष बने
अक्रूर धाम का लोकार्पण और उदघाटन २८ को.

मथुरा। मथुरा वृन्दावन मार्ग स्थित श्री अक्रूर धाम में श्री अक्रूर मंदिर का उदघाटन एवं लोकार्पण आगामी २८ मार्च रविवार को प्रात १० श्री हरीश गुप्ता कुरकुरे हैदराबाद द्वारा तथा लोकार्पण श्री सुरेश चन्द्र गुप्ता अन्तराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अक्रूर धाम वृन्दावन ट्रस्ट एवं अध्यक्षता इंजीनियर राघवेन्द्र वार्ष्णेय इंजीनियर कृष्ण नंदन वार्ष्णेय द्वारा दीप प्रज्वलन एवं स्मृति ग्रन्थ विमोचन इंजीनियर हरिओम गुप्ता द्वारा किया जायेगा इस कार्यक्रम के मुख्यअतिथि श्री गिरीश संघी ,सांसद राज्य सभा एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन होंगे उक्त जानकारी कार्यक्रम के सह संयोजक अमित वार्ष्णेय ने दी एवं समाज के लोगों से अधिक से अधिक संख्या में समय पर पहुंचनेके अपील की ।
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
रविवार, 14 फ़रवरी 2010
पूना में आतंकी हमला 9 मरे ५० घायल
सोमवार, 8 फ़रवरी 2010
मथुरा में इंदिरा आवासों को अपात्रो को दिया
रविवार, 7 फ़रवरी 2010
मथुरा में लगातार अपराधों में वृद्धि से आतंकित आम जन
शनिवार, 6 फ़रवरी 2010
मथुरा में यमुना प्रदूषण मुक्ति कि पोल खुली

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
१० लाख का गुटखा खा जाते हैं ब्रजवासी

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
बाघ और उसकी प्रजाति को बचाना होगा.

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010
पुलिस कि हिरासत से कैदी भागा
सोमवार, 1 फ़रवरी 2010
अब श्रद्धालुओं को पैदल ही मंदिर तक जाना होगा।
रविवार, 31 जनवरी 2010
लापरवाही के चलते मथुरा में 9 सिपाही निलंबित
शनिवार, 30 जनवरी 2010
प्रति व्यक्ति आय ४१ हज़ार हुई
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
कल बेहद खूबसूरत नजर आएगा मंगल

नई दिल्ली। खगोल विज्ञान के शौकीनों के लिए एक खुशखबरी है। लाल ग्रह यानी मंगल शुक्रवार पृथ्वी से सर्वाधिक बड़ा और अत्यंत चमकीला नजर आएगा।
शुक्रवार पृथ्वी से मंगल की दिशा में भी परिवर्तन होगा क्योंकि पृथ्वी सूर्य और मंगल के बीच होगी। यह खूबसूरत नजारा शुक्रवार सुबह एक बज कर 37 मिनट पर देखा जा सकेगा। 'साइंस पापुलराइजेशन एसोसिएशन ऑफ कम्युनिकेटर्स एंड एजुकेटर्स' के निदेशक सी बी देवगन ने बताया कि हर दो साल में मंगल ग्रह एक बार पृथ्वी के करीब आता है। शुक्रवार यह ग्रह पृथ्वी के बेहद करीब था। इसे नंगी आंखों से देखा जा सकता था।
शुक्रवार को लाल ग्रह की पृथ्वी से दूरी 0.6639 एस्ट्रॉनोमिकल यूनिट होगी। देवगन ने बताया कि मंगल को सूर्य के आसपास एक चक्कर लगाने में करीब 687 दिन लगते हैं जबकि पृथ्वी 365 दिन में सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है। जाहिर है कि दोनों की गति में अंतर है। इसीलिए मंगल दो साल में एक बार पृथ्वी के करीब आ जाता है।
देवगन ने बताया कि आसमान में पूर्व की ओर दूरबीन रख कर स्पष्ट, चमकते हुए मंगल ग्रह को देखा जा सकता है। मंगल की सतह पर आयरन आक्साइड की मात्रा दस फीसदी है जिसकी वजह से यह ग्रह लाल नजर आता है। नेहरू प्लेनेटोरियम की निदेशक एन रत्नाश्री ने बताया कि इस बार जब पृथ्वी सूर्य और मंगल के बीच आएगी तब मंगल धीरे-धीरे पीछे की ओर जाएगा और बाद में सामान्य तरीके से आगे आ जाएगा। यह दिलचस्प नजारा होगा।
उन्होंने बताया कि अब अगली बार पृथ्वी तीन मार्च 2012 को सूर्य और मंगल के बीच आएगी तथा पांच मार्च 2012 को मंगल पृथ्वी के सर्वाधिक करीब होगा। पिछली बार 24 दिसंबर 2007 को लाल ग्रह पृथ्वी के बेहद करीब था।
गुरुवार, 28 जनवरी 2010
मी लार्ड के लिए क्या है कानून

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। वी. रामास्वामी, सौमित्र सेन और पी.डी. दिनकरन के बीच क्या समानता है? आप कहेंगे कि तीनों न्यायमूर्ति हैं. मगर समानता यह नहीं है। दरअसल तीनों के मामले न्यायपालिका को लेकर संविधान की ऊहापोह की मजबूत नजीर हैं। साठ का हो चुका गणतंत्र अभी यह तय नहीं कर पाया है कि 'मी लार्ड' के लिए कौन सा कानून होगा।
जजों की नियुक्ति का प्रकरण हो या न्यायमूर्तियों की निष्ठा में खामी होने पर उपचार का, अदालत की पारदर्शिता की बहस हो या फिर न्यायिक सक्रियता की, लोकतंत्र के इस स्तंभ को लेकर संविधान में रोशनी जरा कम है।
अदालतों के अधिकारों का पेंडुलम कार्यपालिका यानी सरकार और न्यायपालिका के बीच झूलता रहा है। न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर शुरुआत में सरकार ही ताकतवर थी। लेकिन, आपातकाल के दौरान हाइ कोर्ट में जजों की तैनाती के विवादों ने सब-कुछ उलट-पलट दिया। 1977 में न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना का प्रकरण उस विवाद की इंतहा थी जब तत्कालीन सरकार ने खन्ना की वरिष्ठता की अनदेखी करते हुए कनिष्ठ न्यायाधीश एमएच बेग को भारत का मुख्य न्यायाधीश बना दिया। न्यायमूर्ति खन्ना ने उसी दिन पद से इंस्तीफा दे दिया था।
इतिहास में दर्ज है कि आपातकाल में लोगों को निरुद्ध करने के सरकार के अधिकार पर फैसला करने वाली पांच जजों की पीठ में खन्ना ही सरकार के खिलाफ थे।
बाजी पलटी तो 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की शक्ति अपने हाथ में ले ली। इसके बाद अदालतों की जवाबदेही का विवाद शुरू हो गया। 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1993 के फैसले पर एक बार फिर मुहर लगा दी। नियुक्ति के लिए कोलीजियम की व्यवस्था आई और सौमित्र सेन व दिनकरन इसी व्यवस्था से नियुक्त हुए। यानी कि असमंजस कायम है। पहले अगर सरकार के अधिकार सवालों के घेरे में थे तो अब अदालतों के अपने अधिकारों पर प्रश्न चिन्ह हैं।
असमंजस की गुत्थी तब और कठोर हो जाती है जब इसमें विधायिका और कार्यपालिका की सीमाओं की बहस जुड़ जाती है। अधिकारों के बंटवारे या न्यायिक सक्रियता की बहस पिछले कुछ दशकों की सबसे हाईप्रोफाइल बहस है जिसके मूल में संविधान की अस्पष्टता ही है। कभी लोकसभा अदालतों को लक्ष्मण रेखा दिखाती है तो कभी अदालतें कहती हैं कि वह विधायिका के फैसले की संवैधानिकता और कार्यपालिका के फैसले की समीक्षा कर सकती हैं। लोकसभा अध्यक्ष व विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों के अलावा राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में अदालतों के दखल की बहसें महीनों चली हैं।
अदालतों की पारदर्शिता को लेकर भी संविधान का असमंजस कायम है। कानून से भी पहले 'राइट टू नो' का सिद्धांत देने वाली न्यायपालिका अपने घर में सूचना कानून की पैठ पर असहज है। सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ तीन फैसले आ चुके हैं। लेकिन, अभी भी उलझन है। कहते हैं कि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया से पर्दा हटने का डर है। बात घूम कर न्यायपालिका के लिए विधान पर आती है जो कि अभी भी अस्पष्ट है। दरअसल छह दशक बाद भी गणतंत्र अपने संविधान से लोकतंत्र के एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्से से जुड़े कानूनों का ब्यौरा पूछ रहा है। ध्यान रखिए कि यह हिस्सा पूरे लोकतंत्र के लिए न्याय का जिम्मेदार है।
मुख्य घटनाएं
1958 - विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट, जिसमें कहा गया कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की हर नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश की सहमति ली जानी चाहिए। यह सलाह संविधानसभा ने नहीं मानी। आयोग की सिफारिश लागू नहीं हुई।
1973 - देश भर की बार एसोशिएशन ने बताया जजों की नियुक्ति का फार्मूला
-प्रशासनिक सुधार आयोग ने विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट से सहमति जताई
1977 - सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश एच.आर. खन्ना की अनदेखी कर कनिष्ठ न्यायाधीश को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया। न्यायमूर्ति खन्ना ने पद से इस्तीफा दे दिया।
-इसी साल विधि आयोग की 80वीं रिपोर्ट में फिर बताई गई नियुक्ति प्रक्रिया। इसमें नियुक्ति के लिए हाई लेबल पैनल के गठन का सुझाव दिया।
1987 - राष्ट्रीय न्यायिक सेवा आयोग पर विधि आयोग की 121वीं रिपोर्ट
1990 - राष्ट्रीय न्यायिक आयोग विधेयक
1993 - सुप्रीम कोर्ट का फैसला, नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार का दखल समाप्त किया। जजों की नियुक्ति न्यायपालिका ने अपने हाथ में ले ली।
1998 - सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1993 के फैसले को सही ठहराया। नियुक्ति की कोलीजियम व्यवस्था लागू हुई।
2010 - दिल्ली हाई कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर को सूचना कानून के दायरे में बताया
कानूनविद शांतिभूषण की राय
न्यायपालिका के विरोध की वजह से जजों की नियुक्त और आरोपी जजों को हटाने का कोई कारगर तंत्र नहीं बन पाया। न्यायपालिका का विरोध स्वाभाविक है। कोई व्यक्ति जवाबदेह होने से कतराता है। जजों को हटाने की महाभियोग की इतनी जटिल प्रक्रिया है कि कभी सफल ही नहीं होती। जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग गठित होना चाहिए।
[आपातकाल के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार के विधि मंत्री शांतिभूषण ने कानून में संशोधन कर आपातकाल घोषित करना मुश्किल किया और न्यायपालिका को शक्तिशाली बनाया था] जागरण डाटकाम
बुधवार, 27 जनवरी 2010
अमर के बाद की सपा का खाका तैयार

नई दिल्ली [राजकेश्वर सिंह]। अमर सिंह के इस्तीफे की मंजूरी के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पार्टी का नया खाका तैयार कर लिया है। अमर सिंह से खाली हुए पदों को बुधवार को भरा जा सकता है। वरिष्ठ समाजवादी और राज्यसभा में पार्टी के नेता जनेश्वर मिश्र के निधन से खाली पदों को भी भरने की तैयारी है। पार्टी का नया एजेंडा गांव, गरीब व पिछड़ों के बीच जाने का है।
सूत्रों के मुताबिक अमर प्रकरण के बाद मुलायम सिंह ने 'भविष्य की सपा' का नया खाका तैयार कर लिया है। पार्टी में माना जा रहा है कि महासचिव, प्रवक्ता और संसदीय बोर्ड के सदस्य पद से इस्तीफा और उनकी मंजूरी के बाद अमर जिस तरह सपा की नीतियों पर हमले कर रहे हैं, उससे साफ है कि पार्टी में अब उनकी रुचि नहीं बची है। बताते हैं कि इन्हीं निष्कर्षों पर पहुंचने के बाद पार्टी प्रमुख ने अमर की जगह पार्टी के नए महासचिव व प्रवक्ता को बनाने का फैसला कर लिया है। बुधवार को इन पदों पर किसी पुराने समाजवादी व पूर्व सांसद के नाम का ऐलान हो सकता है।
बताते हैं कि बदली परिस्थितियों में भी पार्टी ने सभी वर्गो को साथ लेकर चलने की रणनीति बनाई है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जनेश्वर मिश्र के निधन से सपा ने अपने सबसे पुराने समाजवादी को खो दिया है। उनके कद की भरपाई आसान नहीं है लेकिन बुधवार को सपा के नए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व राज्यसभा में सपा संसदीय दल के नेता के नाम की भी घोषणा हो सकती है।
पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्रों की मानें तो सपा ने पिछड़ों और अति पिछड़ों के बीच जाने का नया कार्यक्रम भी बनाना शुरू कर दिया है। आने वाले महीनों में इन वर्गो का लखनऊ में एक सम्मेलन भी कराने की योजना है। जबकि उससे पहले पार्टी के क्षेत्रीय व जिलाध्यक्षों और अनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारियों की लखनऊ में बैठक बुलाकर उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार को हर मामले में घेरने की हिदायत दी जा सकती है। बताते हैं कि आंदोलन खड़ा करने के मद्देनजर थाना, तहसील और जिला स्तर पर पदाधिकारियों को घेराव व प्रदर्शन का एजेंडा दिया जाएगा। पार्टी में उनकी हैसियत का आकलन भी इन्हीं प्रदर्शनों के नतीजों के आधार पर किया जाएगा।
जागरण डाटकाम
सोमवार, 25 जनवरी 2010
डेरा सच्चा सौदा की सार्थक पहल :यौनकर्मियों से विवाह का संकल्प
सिरसा के डेरा सच्चा सौदा में आयोजित समारोह में भाग लेने वाले कार्यकर्ताओं ने कोलकाता और नई दिल्ली की यौनकर्मियों से विवाह करने का संकल्प लिया है।
संगठन के प्रवक्ता आदित्य इंसाँ ने कहा कि सोमवार को हम एक समारोह का आयोजन कर रहे हैं, जहाँ करीब 1400 युवक उन महिलाओं से विवाह का संकल्प लेंगे, जिन्हें देह व्यापार के लिए बाध्य किया गया और आगे शोषण से बचना चाहती हैं। कुछ परिवारों ने इन महिलाओं और उनके बच्चों को कानूनी तौर पर अपनाने का निर्णय किया है। उन्होंने कहा कि सभी कार्यकर्ता डेरा के सदस्य हैं।
इंसाँ ने कहा कि दो-तीन युगल कल विवाह के बंधन में बँधेंगे, जबकि अन्य एक वर्ष के भीतर शादी कर लेंगे। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य एचआईवी एड्स पर लगाम लगाना भी है। (भाषा)
रविवार, 24 जनवरी 2010
नेताजी के बारे में कम्युनिस्टों का मूल्यांकन गलत

कोलकाता। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने शनिवार को ज्योति बसु द्वारा 14 वर्ष पहले कही गई बातों को दोहराया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में कम्युनिस्टों का मूल्यांकन गलत था।
नेताजी के 114वें जन्मदिवस पर राजभवन के नजदीक उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद मुख्यमंत्री ने एक रैली में कहा, 'नेताजी के बारे में कम्युनिस्टों का आकलन गलत था और ज्योति बसु ने भी ऐसा कहा था।'
नेताजी के जन्म शताब्दी वर्ष 1997 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने स्वीकार किया था कि स्वतंत्रता से पहले के समय में नेताजी को देशद्रोही कहने वाले कम्युनिस्ट गलत थे। दिवंगत बसु ने 23 जनवरी 1997 को कहा था कि हमने खुद को ठीक किया है और उनके कार्यो को मान्यता दी है।
बसु की स्वीकारोक्ति को याद करते हुए भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य सरकार चारों पार्टियों माकपा, भाकपा, आरएसपी और फारवर्ड ब्लाक की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है कि 23 जनवरी को राष्ट्रीय देशभक्ति दिवस घोषित किया जाए। चारों वामपंथी पार्टियों ने इस मांग को लेकर प्रधानमंत्री से भी संपर्क किया है।
शनिवार, 23 जनवरी 2010
पैसा और रसूख हो तो पढ़ाई का धंधा सबसे चोखा

नई दिल्ली [राजकेश्वर सिंह]। पढ़ाई का धंधा सबसे आसान है। सरकार की मुहर भी लग ही जाती है। इसलिए तकनीकी से लेकर चिकित्सा तक और वाणिज्य से कला तक हर क्षेत्र में ऐसे शिक्षा संस्थान उग आए, जिनमें बहुत कुछ संदेहास्पद है मगर इन्हें नियम कानूनों के पेंच के सहारे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग [यूजीसी], चिकित्सा परिषद [मेडिकल काउंसिल] और तकनीकी शिक्षा परिषद [एआईसीटीई] की मंजूरी मिल जाती है। ताजा सूरते हाल यह है कि कुल 480 विश्वविद्यालयों में से 148 और कुल 22 हजार कालेजों में से सिर्फ 3942 ही सरकार के अधिकृत प्रमाणन संस्था राष्ट्रीय मूल्याकंन एवं प्रत्यायन बोर्ड [एनएएसी] से मान्यता प्राप्त हैं।
उच्च शिक्षा का पूरा ढांचा किल्लत का बाजार है इसलिए इन निजी व्यापारियों की हर तरफ पौ बारह है। उच्च शिक्षा में बुनियादी ढांचे की कमी है। मोटेतौर पर लगभग तीन सौ और विश्वविद्यालयों और दो हजार से अधिक कालेजों की जरूरत है। उनमें भी 18 से 24 साल के बच्चों की संख्या के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में 63, बिहार में 32, पश्चिम बंगाल में 30, महाराष्ट्र में 20 और राजस्थान में 13 और विश्वविद्यालयों की दरकार है। सरकार इसे पूरा करने की स्थिति में नहीं है। नतीजा यह है कि निजी क्षेत्र फल-फूल रहा है।
जरा गौर करिए। किसी को इंजीनियरिंग कालेज या फिर अपने कालेज को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाना है तो सीधे केंद्र सरकार को आवेदन करना होता है। उसके बाद उस आवेदन पर अगली कार्रवाई का जिम्मा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद [एआईसीटीई] और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग [यूजीसी] पर है। दोनों मामले में तरीका एक ही है। विशेषज्ञ समितियां ही उन कालेजों का भौतिक सत्यापन करती हैं। विशेषज्ञ समितियां की सिफारिशों पर ही सरकार भी अपनी मुहर लगा देती है और फिर कालेज या डीम्ड यूनिवर्सिटी चल पड़ती है। भले ही उसके बाद वे जरूरी मापदंडों को पूरा करते हों या नहीं।
सूत्र बताते हैं होना तो बहुत कुछ चाहिए, लेकिन वह सब होता कहां है। मसलन् किसी संस्थान के पास कुल जमीन कितनी है। खुद की है या फिर लीज पर है। पढ़ाने के लिए कमरे कितने हैं। छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग हास्टल हैं या नहीं। लैब कैसा है? सभी शिक्षक उच्च शिक्षा के नियत वेतनमान के दायरे में हैं। संस्थान का नियमित निदेशक या प्रिसिंपल है या नहीं।
सभी फैकल्टी का भविष्य निधि [पीएफ] कटता है या नहीं। शिक्षक व छात्र अनुपात मानक के लिहाज से है या नहीं। उसके पाठ्यक्रम राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं या नहीं। संस्थान राष्ट्रीय मूल्याकंन एवं प्रत्यायन बोर्ड से प्रमाणित है या नहीं? इसके अलावा फीस वसूली और दाखिले की प्रक्रिया जैसे मामले भी महत्वपूर्ण हैं।
इसी तरह निजी क्षेत्र में मेडिकल कालेज खोलने के भी नियम-कायदे हैं। सरकार और मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया के बीच वहां भी आवेदनों पर विशेषज्ञ समिति की मौका-मुआयना रिपोर्ट ही मायने रखती है। सूत्रों के मुताबिक मापदंड तो और भी हैं, लेकिन सबके लिए अलग से कानून नहीं है। अलबत्ता नियम-कायदे हैं, लेकिन उसमें ही बीच का रास्ता निकल आता है।
शिक्षा की ऊंची और निजी 'दुकानों' का खेल कैसा है? 126 डीम्ड विश्वविद्यालयों की समीक्षा में 44 के मापदंडों पर खरे न उतरने से सच्चाई सामने आ चुकी है। इधर घोटालों से बदनाम हुई एआईसीटीई ने कागजी खेल बंद करके सब कुछ आनलाइन कर दिया।
शिक्षा में भ्रष्टाचार की भरमार
नई दिल्ली [नीलू रंजन]। उदार बाजार में शिक्षा का कारोबार भ्रष्टाचार का नया गढ़ है। पिछले छह महीने में ही सीबीआई शिक्षा में फैले भ्रष्टाचार से संबंधित लगभग तीन दर्जन मामले दर्ज कर चुकी है। जिनमें दो दर्जन से अधिक मामले अकेले अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद [एआईसीटीई] के अधिकारियों के खिलाफ हैं। सीबीआई एआईसीटीई के सदस्य सचिव के नारायण राव को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार कर चुकी है। इसी तरह राष्ट्रीय अध्यापक परिषद और वास्तुकला परिषद के अधिकारियों के खिलाफ भी सीबीआई ने नया केस दर्ज किया है।
सीबीआई द्वारा दर्ज मामलों के अनुसार भ्रष्टाचार के पैमाने पर सबसे ऊपर देश की तकनीकी शिक्षा को नियंत्रित करने वाली अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद [एआईसीटीई] है। जहां एआईसीटीई के तत्कालीन सदस्य सचिव के नारायण राव आंध्रप्रदेश के एक निजी इंजीनियरिंग कालेज को मान्यता देने के एवज में पांच लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार हो चुके हैं। वहीं सीबीआई ने एआईसीटीई के अध्यक्ष आारए यादव समेत अन्य अधिकारियों के खिलाफ फरीदाबाद के एक शिक्षण संस्थान की सीटें बढ़ाने के लिए रिश्वत मांगने का मामला दर्ज किया है।
पहली बार एआईसीटीई के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज किए गए। जब सीबीआई ने जांच शुरू की तो वहां फैले भ्रष्टाचार को देखकर उसके होश उड़ गए। हालत ये है कि सीबीआई छह महीने के भीतर ही एआईसीटीई के अधिकारियों के खिलाफ 25 से अधिक एफआईआर दर्ज कर चुकी है और अभी भी यह सिलसिला नहीं रुका है।
बात सिर्फ एआईसीटीई की नहीं है। देश भर के शिक्षक प्रशिक्षण कालेजों को मान्यता देने वाली राष्ट्रीय अध्यापक प्रशिक्षण परिषद [एनसीटीई] में भी भ्रष्टाचार के मामले खुलकर आ रहे हैं। सीबीआई ने एनसीटीई के अधिकारियों के खिलाफ पिछले दिनों एक साथ सात एफआईआर दर्ज की हैं।
इन अधिकारियों पर भी एआईसीटीई की तरह ही रिश्वत लेकर अध्यापक प्रशिक्षण कालेजों को मान्यता देने का आरोप है। वहीं एनसीटीई के अध्यक्ष प्रो एमए सिद्दीकी के खिलाफ खुद मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव एके सिंह ऐसे ही आरोपों की जांच कर रहे हैं। सिद्दीकी के खिलाफ कांग्रेस के एक सांसद ने कालेजों को मान्यता देने में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया था।
इसके अलावा वास्तुकला की शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी के लिए बनाई गई वास्तुकला परिषद के अध्यक्ष समेत तमाम अधिकारी सीबीआई के निशाने पर हैं। सीबीआई ने उनके खिलाफ प्रारंभिक जांच का केस दर्ज किया है। गौरतलब है कि खुद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वास्तुकला परिषद के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत करते हुए सीबीआई से जांच की सिफारिश की थी। इसी तरह यूजीसी में कुछ मामलों की जांच केंद्रीय सतर्कता आयोग कर रहा है। जागरण डाटकाम
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
तंत्र के गण-अधिकार को बनाया हथियार, चमत्कार

एक अधिकार जो बन गया हथियार। सूचना का अधिकार। भ्रष्टाचार की जड़ खोदने का हथियार। हक की जंग में फैसलाकुन हथियार। हम सब के बीच से आगे निकलकर कुछ लोगों ने इस हथियार को अपनाया है। सैकड़ों-हजारों वंचितों को उनका हक दिलाया है। कुछ ऐसे मुद्दों-मसलों को परवान चढ़ाया है, जो नजीर बन गए हैं या बनने जा रहे हैं। व्यवस्था में उलट-फेर का सबब बन रहे हैं। सूचना के अधिकार की जंग के तीन सिपहसालार किस संजीदगी से गणतंत्र की बुनियाद मजबूत करने में जुटे हैं, जानिए-
खत्म करना है भ्रष्टाचार
जजों की संपत्तिकी घोषणा जब-जब जिक्र में आएगी, सुभाष चंद्र अग्रवाल खुद-ब-खुद उभर जाएंगे। क्योंकि इस जिदेजहद की शुरूआत सुभाष चंद्र अग्रवाल ने ही की थी, जो भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद तक जा पहुंची है। सुभाष चंद्र अग्रवाल दिल्ली में चांदनी चौक दरीबा कलां के रहने वाले हैं। लक्ष्य तय कर रखा है-'खत्म करना है भ्रष्टाचार।' कोशिश जारी है, कामयाबियों के साथ। हालांकि वह अपनी कोशिशों को महज शुरुआत मानते हैं। कहते हैं-'लोगों को उत्पीड़न के खिलाफ बोलना जरूर चाहिए। तरीका खुद चुना जा सकता है।' बकौल सुभाष, बचपन में वह दब्बू थे। चुपचाप अन्याय सह-देख लेते। लेकिन एक वाकए ने पूरी तासीर ही बदल दी। तब सुभाष दिल्ली कालेज आफ इंजीनियरिंग के छात्र थे। कालेज से घर वापसी के दौरान माल रोड पर डीटीसी बस में बैठे और कंडक्टर से टिकट मांगा। टिकट बीस पैसे का था। कंडक्टर ने पांच पैसे लिए मगर टिकट नहीं दिया। यानी सरकार को चूना लगा और पैसा गया कंडक्टर की जेब में। सुभाष ने विरोध किया, तो डपट मिली-'दिल्ली में नए हो क्या।' वह चुपचाप बस से उतर गए। घर लौटकर एक अखबार में संपादक के नाम पत्र लिखा, अगले दिन छप भी गया। उस एक पत्र से दिल्ली परिवहन में मानो भूचाल आ गया। उसी दिन अधिकारी कंडक्टर को लेकर कालेज पहुंचे। कंडक्टर ने सुभाष से माफी मांगी। सुभाष को छपे शब्दों की ताकत का अहसास हुआ। उसी दिन से उन्होंने जनहित के विषयों पर अखबारों को पत्र लिखना शुरू किया। 31 जनवरी, 2006 तक वे 3699 पत्र लिख चुके थे। इसके लिए उनका नाम गिनीज बुक में आया। 12 अक्टूबर, 2005 को जब आरटीआई एक्ट [सूचना का अधिकार] अस्तित्व में आया तो उसे हक दिलाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का हथियार बना लिया। अग्रवाल अभी तक करीब पांच सौ आरटीआई लगा चुके हैं जिसमें से सवा सौ के करीब की सुनवाई केंद्रीय सूचना आयोग में हो चुकी है और सौ से अधिक मामलों में फैसला भी पक्ष में आया है। इस अधिकार के तहत चुनाव बैंकिंग, परिवहन, संचार व्यवस्था में सुधार की उनकी मुहिम चालू है।
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नहीं होंगे रिटायर कभी
कमोडोर लोकेश बत्रा। 36 वर्ष तक नौसेना में रहकर देश सेवा की। कहने को तो वर्ष 2003 से सेवानिवृत हैं, लेकिन सही मायनों में नहीं। वह गणतंत्र की सेवा किए जा रहे हैं, जिस तरह एक सच्चे गण को करना चाहिए। ज्यादातर लोग छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर तंत्र को कोसते रहते हैं। लेकिन लोकेश बत्रा ने कोसने के बजाए कुछ करने का बीड़ा उठाया। उनके प्रयास का ही नतीजा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में सूचना के अधिकार [आरटीआई] की अपील की सुनवाई के लिए देश के सभी जिलों को वीडियो कांफ्रेंसिंग व्यवस्था से जोड़ा गया। नोएडा प्राधिकरण में आरटीआई के लिए सभी सूचनाओं को आनलाइन कर दिया गया है। नोएडा के सेक्टर-25 स्थित जलवायु विहार में वह बस गए हैं। 63 वर्ष की आयु में भी वह जवानों पर भारी पड़ते हैं। उन्होंने सूचना का अधिकार एक्ट के हिंदी संस्करण में 34 त्रुटियों को ठीक कराया। पासपोर्ट कार्यालय में सेक्शन 4 को मानने से मना कर दिया था। बाद में उन्होंने आरटीआई के माध्यम से उसे देश के सभी पासपोर्ट कार्यालय में लागू कराया। बत्रा कहते हैं कि आरटीआई को उन्होंने लोकतंत्र की व्यवस्था सुधारने का हथियार बनाया। वह बताते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई के लिए दो अलग-अलग स्थानों पर जाना पड़ता था। एक जगह फाइल देखी जा सकती थी और दूसरी जगह पैसे जमा किए जा सकते थे। प्रधानमंत्री के साउथ ब्लाक स्थित कार्यालय में न तो गाड़ी पार्किग और न ही टायलेट की व्यवस्था थी। इसकी शिकायत भी आरटीआई के माध्यम से उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय में की। बाद में जन सूचना अधिकारी को साउथ ब्लाक से हटाकर रेल भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। बत्रा कहते हैं-आरटीआई का प्रयोग करते रहना चाहिए, जब तक आप व्यवस्था को ठीक नहीं करा देते।
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नेत्रहीन मसीहा
ईश्वर ने सतपाल सिंह बैरसियां की आंखों में नूर नहीं बख्शी है। लेकिन वह दूसरों की जिंदगी को रोशन करते हैं। जरिया है सूचना का अधिकार। सतपाल सिंह बैरसियां पंजाब में नवां शहर के रहने वाले हैं। हुआ यह कि गांव में कुछ गरीब लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला। सतपाल सिंह के मन में एक कसक उठी। उन्हें रेडियो सुनने का बेहद शौक है। रेडियो पर राइट-टू-इनफारमेशन कानून के बारे में सुनकर एक संकल्प लिया। बस यहीं से शुरू हुआ गरीबों को न्याय और इंसाफ दिलाने का सफर। पिछले तीन वर्ष से सतपाल सिंह तकरीबन प्रत्येक सरकारी विभाग से जानकारी आरटीआई के जरिए लेकर लोगों को न्याय दिलाने के सफर को आगे बढ़ा रहे है। सतपाल सिंह को पता चला कि जिला खुराक विभाग ने गांव के बीपीएल श्रेणी के पांच लोगों के नाम नीले कार्ड की सूची से काट दिए है। उन्होंने सूचना अधिकार एक्ट का इस्तेमाल कर इंसाफ दिलाया। इसी तरह सतपाल सिंह ने शिक्षा विभाग, पंचायत विभाग, बिजली विभाग से लेकर जिला कल्याण विभाग तक से सूचना अधिकार एक्ट के जरिए लोगों को न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
गुरुवार, 21 जनवरी 2010
मायावती ने कहा- पवार को हटाओ, अन्यथा
मायावती ने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह से आग्रह किया कि पवार को उनके पद से हटा दिया जाए क्योंकि चीनी और फिर दूध के बारे में दिए उनके बयानों से जमाखोरों और कालाबाजारियों को शह मिली है और महँगाई बढ़ी है।
मायावती ने तेजी से बढती महंगाई की चर्चा करते हुए पवार को हटाए जाने की माँग की। उन्होंने कहा कि पवार के बयानों से ही महँगाई बढ़ रही है।
मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र की कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सरकार के उस फैसले की आलोचना की जिसमें तय किया गया है कि नई टैक्सियों के लिए लाइसेंस केवल उन्हीं लोगों को दिया जाएगा, जिनको मराठी की बहुत अच्छी जानकारी है और जो कम से कम 15 साल से राज्य में रह रहे हैं।
बुधवार, 20 जनवरी 2010
इजहारे इश्क दिवस 'वसंत पंचमी'

प्रेम का उपहार : जरूरी नहीं कि प्रेमिका को ही कोई उपहार या फूलों का गुलदस्ता भेंट करें। अपने किसी मित्र, सहकर्मी, सहपाठी, पत्नी या गुरु के प्रति सम्मान और प्यार व्यक्त करने के लिए भी आप उपहार दे सकते हैं। यह भी जरूरी नहीं कि उपहार ही दें, आप चाहें तो प्रेम के दो शब्द भी बोल सकते हैं या सिर्फ इतना ही कह दें कि 'आज मौसम बहुत अच्छा' है।
वसंत पंचमी के दिवस पर पेश है सुमित्रा नंदन पंत की चिदंबरा पुस्तक के लिए गई कविता।
ऋतुओं की ऋतु
फिर वसंत की आत्मा आई,
मिटे प्रतीक्षा के दुर्वह क्षण,
अभिवादन करता भू का मन !
दीप्त दिशाओं के वातायन,
प्रीति साँस-सा मलय समीरण,
चंचल नील, नवल भू यौवन,
फिर वसंत की आत्मा आई,
आम्र मौर में गूँथ स्वर्ण कण,
किंशुक को कर ज्वाल वसन तन !
देख चुका मन कितने पतझर,
ग्रीष्म शरद, हिम पावस सुंदर,
ऋतुओं की ऋतु यह कुसुमाकर,
फिर वसंत की आत्मा आई,
विरह मिलन के खुले प्रीति व्रण,
स्वप्नों से शोभा प्ररोह मन !
सब युग सब ऋतु थीं आयोजन,
तुम आओगी वे थीं साधन,
तुम्हें भूल कटते ही कब क्षण?
फिर वसंत की आत्मा आई,
देव, हुआ फिर नवल युगागम,
स्वर्ग धरा का सफल समागम !
***
पतंग का मजा : वसंत पंचमी पर पतंग उड़ाने का मजा ही कुछ और होता है, क्योंकि हवाओं में थोड़ी स्थिरता आ जाती है तो पतंग की उड़ान को ऊँचे से ऊँचा किया जा सकता है। इस उड़ान के साथ ही आप जीवन में आगे बढ़ने के लिए नए संकल्प लें और नए विचार को जन्म दें। पक्षी भी अपनी उड़ान को पुन: ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए पंखों को दुरस्त कर लेते हैं।

यदि आप नास्तिक हैं तब भी आपके लिए यह दिवस महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इसी दिन से जब प्रकृति के कण-कण में परिवर्तन हो रहा है तो स्वाभाविक ही आपके मन और बुद्धि में भी परिवर्तन हो ही रहा होगा। तब क्यों नहीं हम इस परिवर्तन को समझें। यह फिर से नया हो जाने का परिवर्तन है।
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
बसु को अंतिम विदाई देने उमड़ा जनसैलाब

तय कार्यक्रम के मुताबिक पार्थिव देह को सुबह सुबह साढ़े आठ बजे 'पीस हेवन' शवगृह से अलीमुद्दीन स्ट्रीट स्थित माकपा मुख्यालय लाया गया। बाद में यह राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग ले जाई गई। जहाँ से इसे विधानसभा के लिए ले जाया गया। यहाँ जनसामान्य के दर्शनार्थ पार्थिव शरीर को पाँच घंटे तक रखा जाएगा। दोपहर तीन बजे देह अपने अंतिम पड़ाव एसएसकेएम अस्पताल के लिए ले जाई जाएगी।
अंतिम यात्रा काफिले के आगे कोलकाता पुलिस की एक पायलट कार चल रही थी। सड़क के दोनों ओर लोग दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि देने के लिए खड़े थे। निमोनिया के संक्रमण की वजह से 95 वर्षीय बसु को एक जनवरी को कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहाँ 17 जनवरी को उनका देहांत हो गया।
एजेसी बोस रोड पर लगाए गए अवरोधकों के पीछे भारी संख्या में लोग पहले से ही मौजूद थे, जो अपने नेता के अंतिम सफर में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आए थे। सफेद कपड़े पहने माकपा के स्वयंसेवी हाथों में लिए पार्टी के झंडों को झुकाए सावधान मुद्रा में खड़े थे।
सर्दी की परवाह किए बिना सड़कों पर उमड़ आई भीड़ के चलते बसु के पार्थिव शरीर को पार्टी कार्यालय के समीप पहुँचने में करीब आधा घंटा लगा। जब सफेद फूलों और पार्टी के लाल झंडों से सजा शव वाहन अलीमुद्दीन मार्ग पहुँचा तो वरिष्ठ माकपा नेताओं ने बसु को ‘आखिरी सलाम’ किया।
पार्टी मुख्यालय में शव वाहन से बसु का पार्थिव शरीर माकपा महासचिव प्रकाश करात, माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, वाम मोर्चा के अध्यक्ष बिमान बोस, उद्योग मंत्री निरूपम सेन तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं द्वारा नीचे उतारा गया और एक मंच पर रखा गया।
माकपा के सभी वरिष्ठ नेताओं ने अपने सीने पर ‘कामरेड ज्योति बसु लाल सलाम’ लिखे कागज के सफेद बिल्ले लगा रखे थे। जब ज्योति बसु का पार्थिव शव मंच पर रख दिया गया तो पश्चिम बंगाल में माकपा के वरिष्ठतम सदस्य 97 वर्षीय समर मुखर्जी ने सबसे पहले पुष्पचक्र अर्पित किया।
उनके बाद करात येचुरी एसआर पिल्लई एमके पांधी, वृंदा करात और फिर पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्यों ने पुष्पचक्र अर्पित किए।
चूँकि बसु ने अपना शरीर चिकित्सीय अनुसंधान के लिए दान कर दिया था, इसलिए उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा और पार्थिव देह सरकारी अस्पताल को सौंप दी जाएगी। अस्पताल को शव सौंपे जाने से पहले ज्योति बसु को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाएगा। इस मौके पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी मौजूद रहेंगे।
अपने प्रिय नेता को आखिरी विदाई देने केरल, आंध्रप्रदेश और उत्तरप्रदेश समेत देशभर के कई हिस्सों से बड़ी संख्या में कम्युनिस्ट कार्यकर्ता और समर्थक कोलकाता पहुँचे हैं।
बसु ने वर्ष 2003 में गैरसरकारी संगठन ‘गणदर्पण’ के कार्यक्रम में शरीर दान की घोषणा करते हुए लिखा था ‘एक कम्युनिस्ट के तौर पर मैं अंतिम साँस तक मानवता की सेवा करने के लिए दृढ़ संकल्पित हूँ। मैं अब खुश हूँ क्योंकि मौत के बाद भी मैं सेवा करता रहूँगा।’
बसु ने नेत्रदान की भी घोषणा की थी। रविवार को उनके निधन के बाद ‘सॉल्ट लेक’ स्थित सुश्रुत आई फाउंडेशन के डॉक्टरों ने उनके नेत्र निकाल लिए थे। माकपा सूत्रों ने कहा कि बसु के कॉर्निया को मुक्ताकेशी आई फाउंडेशन के लिए रखा गया है। (भाषा)
सभी राजनेता एक जैसे नहीं : राहुल गाँधी

जबलपुर। भारत में खराब राजनीति होने के विचारों के बीच कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी ने एक निजी कॉलेज में छात्रों से कहा कि 'क्या मैं आपको भ्रष्ट या बिना मूल्यों वाला राजनीतिज्ञ नजर आता हूं।'
राहुल गांधी ने सोमवार को यहां एक निजी कालेज में छात्र छात्राओं से खुली बातचीत करते हुए इन बातों को गलत बताया कि समूची राजनीति गंदी हो गई है और इसमें अच्छे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है।
हालांकि, उन्होंने छात्रों की इस बात से सहमति जताई कि राजनीति में कुछ राजनेता भ्रष्टाचारी, बाहुबली और निजी हितों के चलते आए हैं लेकिन सभी राजनेता ऐसे नहीं हैं।
छात्रों का कहना था कि राजनेताओं में कोई स्तर या मूल्य नहीं बचे हैं जिनके कारण अच्छे लोग राजनीति में नहीं आना चाहते।
राहुल गांधी ने राजनीतिक व्यवस्था में और सुधार किए जाने पर सहमति जताते हुए युवाओं से आह्वान किया कि वह राष्ट्र के कल्याण और उसके निर्माण के लिए राजनीति में आगे आएं।
छात्रों द्वारा यह कहे जाने पर कि महाविद्यालयों में चुनाव हिंसक हो जाने के कारण अच्छे छात्र आगे नहीं आना चाहते, राहुल गांधी ने कहा कि राष्ट्र के निर्माण के लिए अच्छे छात्रों को राजनीति में आगे आना होगा।
सोमवार, 18 जनवरी 2010
एक्यू खान पर शिकंजा कसने की तैयारी

इस्लामाबाद। पाकिस्तान के दागी परमाणु वैज्ञानिक एक्यू खान पर सरकार शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है। खान ने हाल में देश के परमाणु हथियारों का खुलासा किया था और सरकार इससे चिंतित है।
द न्यूज डेली ने रविवार को खबर दी है कि विदेशी पत्रकारों के साथ बातचीत, स्थानीय मीडिया और सार्वजनिक भाषणों के जरिए पाकिस्तान के खुफिया परमाणु हथियारों के कथित खुलासे के लिए सरकार ने खान के प्रति जरा भी नरमी नहीं बरतने का फैसला किया है।
अखबार के मुताबिक इसके लिए एकच्उच्च स्तरीय बैठक हुई जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने की। बैठक में सेना के आला अधिकारियों और विधि विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और मामले की पड़ताल की।
इसमें कहा गया है कि सरकार इस मामले को हल्के में लेने के मूड में नहीं है जिसका पता इस तथ्य से चलता है कि बैठक में आतंरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक, आईएसआई के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल शुजा पाशा, ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टॉफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल तारिक माजिद और अन्य ने भाग लिया।
बैठक में शिरकत करने वालों के साथ हुए विचार-विमर्श के आधार पर अखबार ने कहा है कि खान की गतिविधियों से सुरक्षा प्रतिष्ठान बेहद परेशान हैं और सरकार को उनके बयान गैर जिम्मेदाराना लगते हैं जो देश को अजीब और शर्मनाक स्थिति में डाल सकते हैं।
रविवार, 17 जनवरी 2010
माकपा नेता ज्योति बसु का निधन

नहीं होगा अंतिम संस्कार : गौरतलब है कि ज्योति बसु का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा। उनकी इच्छा के मुताबिक उनका पार्थिव शरीर मेडिकल के छात्रों के अध्ययन के लिए दे दिया जाएगा। बसु अपने कई अंग दान कर चुके हैं। इसके अलावा नेत्रदान के लिए डॉक्टरों की टीम अस्पताल पहुँच गई है।
सधे और संस्कारवान नेता : केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने माकपा नेता को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें भारतीय राजनीति का सधा हुआ और संस्कारवान नेता बताया। उन्होंने कहा बसु का जाना देश के लिए अपूरणीय क्षति है।
विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध : राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा बसु उच्च श्रेणी के नेताओं में से थे। वे अपनी विचारधारा, अपने लोग और अपने आदर्शों के प्रति सदा प्रतिबद्ध रहे। यही वजह है कि उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में सबसे लंबी पारी खेली।
महान नेता और देशभक्त चला गया : केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ज्योति बसु के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है। उन्होंने कहा बसु के रूप में देश ने एक महान नेता और देशभक्त खो दिया।
बसु जैसा दूसरा नेता नहीं : पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने बसु को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा बसु जैता नेता तो अब तक भारतीय राजनीति में हुआ है और न ही आगे होगा।
पीएम की कुर्सी को मारी ठोकर : माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी ने बसु को याद करते हुए कहा वे भारत के ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने पार्टी के कहने के बाद प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया। अपने इस निर्णय पर वे टिके रहे।
प्रधानमंत्री से ऊँचा स्थान : राजद प्रमुख लालूप्रसाद यादव ने बसु के निधन को गहरी क्षति बताया। उन्होंने कहा बसु भले ही प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन हम उन्हें प्रधानमंत्री पद से ऊँचा स्थान देते थे। यह उन्हीं के बूते की बात थी कि पोलित ब्यूरो के मना करने पर उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया।
...तो होते दूसरे हालात : कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय ने कहा पोलित ब्यूरो चाहता तो बसु जरूर देश के प्रधानमंत्री बनते। उन्होंने कहा ऐसा होने पर आगे एनडीए की सरकार नहीं बनती और देश के हालात दूसरे होते।
"अवंतिका सविता स्मृति सम्मान " कल मथुरा में
शनिवार, 16 जनवरी 2010
हैती को 50 लाख डॉलर की मदद देगा भारत
सिंह ने कहा कि जरूरत की इस घड़ी में भारत हैती सरकार और वहाँ की जनता के साथ है। हैती के लोगों के प्रति एकजुटता के तौर पर हम 50 लाख अमेरिकी डॉलर की त्वरित नकद सहायता देना चाहते हैं।
हैती के प्रधानमंत्री ज्यां मैक्स बेलिरिवे को लिखे एक पत्र में सिंह ने इस त्रासदी में मृत और घायल लोगों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है।
उन्होंने कहा कि बहुत दुख की बात है कि 12 जनवरी को आये भूकंप के कारण हैती में व्यापक तबाही हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हैती के लोगों में इस प्राकृतिक आपदा से उबरने की शक्ति और क्षमता है।
तीन लाख लोग बेघर : कैरेबियाई देश हैती में पिछले दिनों आए प्रलयंकारी भूकंप की वजह से करीब तीन लाख लोग बेघर हो गए हैं। हैती में संयुक्त राष्ट्र मिशन के अधिकारियों द्वारा हेलिकॉप्टर से किए गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि कुछ इलाकों में 50 प्रतिशत इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं।
तीस लाख डालर दान देंगे वुड्स : महिलाओं के साथ अपने संबंधों के कारण दुनियाभर में बदनामी झेल रहे विश्व के नंबर एक गोल्फर टाइगर वुड्स ने हैती में भूकंप पीड़ितों को तीस लाख डॉलर दान देने का फैसला किया है। अखबार के अनुसार वायक्लेफ जीन येले फाउंडेशन ने भूकंप पीड़ितों के लिए हैती में एक मोबाइल अस्पताल बनाया है। इस फाउंडेशन को दान देकर वुड्स वहाँ डॉक्टर भेजना चाहते हैं।
शुक्रवार, 15 जनवरी 2010
सूर्य ग्रहण को नंगी आँखों से न देखें

नई दिल्ली। देशभर के खगोलविज्ञान प्रेमी कल शताब्दी के सबसे बड़े वलयाकार सूर्य ग्रहण को देखने का उत्सुकता के साथ इंतजार कर रहे हैं लेकिन वैज्ञानिकों और नेत्र चिकित्सकों ने लोगों को इस आकाशीय घटना को नंगी आंखों से नहीं देखने की चेतावनी दी है।
इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर आर सी कपूर ने कहा कि सूर्य के फोटोस्फीयर को कुछ सेकेंड के लिए भी सीधे देखने से फोटोस्फीयर से निकलने वाली दृश्य और अदृश्य विकिरणों के कारण रेटिना स्थाई तौर पर क्षतिग्रस्त हो सकता है। इससे स्थाई तौर पर आंखों की दृष्टि जा सकती है और नेत्रहीनता की स्थिति पैदा हो सकती है। रेटिना में इसकी वजह से दर्द नहीं होता और रेटिना को हुई क्षति हो सकता है कुछ घंटों के लिए न दिखे। इसलिए यह पता नहीं चले कि आंख को क्षति पहुंची है।
नेहरू तारामंडल निदेशक रत्नाश्री ने कहा कि सूर्य ग्रहण को देखने के लिए विशेष रूप से तैयार सौर फिल्टरों या चश्मों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।
गुरुवार, 14 जनवरी 2010
सूर्य ग्रहण: जो डर गया,

सबसे लंबी अवधि का सूर्य ग्रहण कल यानी 15 जनवरी को लगेगा। यह क्षण अगली कई पीढि़यों को देखना नसीब नहीं होगा। अगले हजार साल से अधिक का इंतजार करना पड़ेगा। ग्रहण के दौरान सूर्य सोने के कंगन जैसा खूबसूरत नजारा पेश करेगा। हालांकि यह नजारा सिर्फ दक्षिण भारत में दिखेगा, देश के शेष भाग में आंशिक सूर्य ग्रहण के दर्शन होंगे।
ऐसे ऐतिहासिक क्षणों को देखने से हम भारतीय चूक जाते हैं या अज्ञानता, अंधविश्वास और विभिन्न धारणाओं के चलते कर्मकांडों में लिप्त हो जाते हैं। पिछले साल 22 जुलाई को लगे पूर्ण सूर्य ग्रहण से पहले लोगों में जागरूकता को लेकर विज्ञान प्रसार विभाग, नोएडा ने देशभर से विपनेट क्लब और स्कूली बच्चों से प्रोजेक्ट रिपोर्ट मंगाई थीं। अभियान में पूरे देश से 103 रिपोर्टे आई, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार व मध्य प्रदेश से 15-15 व दिल्ली से नौ रिपोर्ट शामिल थीं। अन्य प्रदेशों से भी एक से लेकर सात तक रिपोर्ट आई। प्रोजेक्ट रिपोर्ट में एक चौथाई आबादी अभी तक ग्रहण के वैज्ञानिक कारणों से अनजान पाई गई। सर्वेक्षण से पता चला कि 80 फीसदी युवा ग्रहण को लेकर जागरूक हैं, लेकिन साठ फीसदी बुजुर्ग इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते। खास यह कि ज्यादातर लोग इसे खगोलीय घटना के बजाय ज्योतिष से जोड़ते हैं। चालीस फीसदी शिक्षित लोग ग्रहण के वैज्ञानिक कारण जानते हैं, लेकिन वे अंधविश्वास भी मानते हैं। प्रोजेक्ट में शामिल 68 फीसदी लोग ग्रहण को खगोलीय घटना मानते हुए भी भयभीत दिखे। सर्वेक्षण में 84 फीसदी महिलाएं ग्रहण के दौरान घरेलू कामों से बचने की बात कहती हैं। वैज्ञानिक इन बातों से बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखते। विज्ञान प्रसार विभाग के पूर्व निदेशक वीबी कांबले कहते हैं कि सूर्य और चंद्र ग्रहण एक निश्चित समय पर होने वाली खगोलीय घटनाएं हैं। अंधविश्वास और अज्ञानता के चलते लोग इन्हें देखने से वंचित रह जाते हैं। युवा आगे बढ़ पुरानी धारणाओं को खत्म कर सकते हैं। विज्ञान प्रसार विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी बीके त्यागी कहते हैं कि लोग सुरक्षित तरीके से सूर्य ग्रहण का नजारा करें, तो ये यादों में संजोकर रखने वाले क्षण होते हैं।
एनसीआर से एक दर्जन बच्चे पहुंचे कन्याकुमारी
ऐतिहासिक सूर्य ग्रहण देखने के लिए विज्ञान प्रसार विभाग के वैज्ञानिकों की टीम के साथ पूरे एनसीआर से करीब एक दर्जन बच्चे कन्याकुमारी में लगे राष्ट्रीय शिविर में पहुंचे हैं। गाजियाबाद व नोएडा से चार व दिल्ली, फरीदाबाद व गुड़गांव से सात बच्चे इस टीम में शामिल हैं। शिविर में देशभर से एक हजार वैज्ञानिक, स्कूली बच्चे व आम लोग जुटेंगे।
बादल छीन सकते हैं 'सोने का कंगन'
नोएडा स्थित राष्ट्रीय मध्यावधि पूर्वानुमान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ। रंजीत सिंह के अनुसार देश के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से में 15 जनवरी को आंशिक बादल छाए रहने की संभावना है। तमिलनाडु, केरल, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी कहीं-कहीं बादल छा सकते हैं या हल्की बारिश होगी। इससे यह आशंका है कि 1999 व 2009 के पूर्ण सूर्य ग्रहण की तरह बादल इस ऐतिहासिक सूर्य ग्रहण को देखने से भी वंचित कर सकते हैं। दे जा
बुधवार, 13 जनवरी 2010
.तो ये है शक्कर का चक्कर

पिछले एक महीने में शक्कर के भाव जमीन से आसमान तक पहुंच गए हैं। 2009 के आखिरी दिन 31 दिसंबर को दिल्ली में इसके दाम 36 रुपये प्रति किलो थे, लेकिन इसके बाद खाद्य मंत्री शरद पवार के बयान ने ऐसा कमाल दिखाया कि ठीक एक हफ्ते बाद 7 जनवरी को शक्कर का भाव 43 रुपये पर पहुंच गया, आज इसका खुदरा मूल्य 50 रुपये प्रति किलो आ गया है। जाहिर है रोजमर्रा के खान-पान में आने वाली चीनी के दामों में लगी इस आग ने आम आदमी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। सबसे ज्यादा आश्चर्य तो इस विभाग के केंद्रीय मंत्री शरद पवार के बयान पर होता है कि आम आदमी की सरकार होने का दावा करने वाले लोग कैसे-कैसे संवेदनहीन बयान देते है।
केंद्र सरकार जहां इस महंगाई के लिए चीनी के घटते उत्पादन को कारण बता रही है, वहीं राज्य सरकार कच्ची चीनी के आयात पर लगी रोक की दुहाई दे रही हैं। जिन-जिन कारणों की दुहाई सरकार दे रही है, वह सभी दिसंबर में भी मौजूद थे, लेकिन तब यह आग नहीं लगी थी। असल में इसके पीछे का मामला कुछ और ही है। आइए, आज हम आपको बताते हैं कि शक्कर के बढ़े दामों का आखिर क्या है चक्कर..:
सरकार के दिए गए तर्क इसलिए जायज नहीं लगते, क्योंकि गन्ने की पेराई का समय जनवरी से फरवरी के बीच होता है। इस लिहाज से चीनी के दामों में कमी आनी चाहिए थी। असल में खाद्य मंत्रालय हर महीने तय करती है कि देश में कितनी चीनी बिक्री की जाए। 30 दिसंबर को मंत्रालय ने ऐलान किया था कि जनवरी में केवल 16 लाख टन चीनी की सेल की जाएगी। जनवरी और फरवरी शादियों और त्योहारों का सीजन होता है, ऐसे में चीनी की मांग भी ज्यादा होती है। जाहिर है इसका पूरा फायदा कारोबारियों ने उठाया और चीनी के दाम आसमान पर पहुंच गए। पिछले एक साल में दोगुने हो चुके चीनी के दाम पर सरकार ने लगाम लगाने की बजाए सप्लाई घटाकर और मांग बढ़ाकर आग में घी का काम कर दिया।
महंगी चीनी के पीछे रेलवे का भी पूरा योगदान रहा है। पिछले कुछ महीनों से रेलवे ने देश के पूर्वी इलाकों में खुले बाजार वाली चीनी की ढुलाई हल्की कर दी है। रेलवे का तर्क है कि वहां दूसरी कमोडिटी पहुंचाना ज्यादा जरूरी है। रेलवे के इस रवैये से कोलकाता की मुसीबत बढ़ गई। कोलकाता चीनी का बड़ा मार्केट है और यहां हर महीने 30 रेक चीनी की जरूरत होती है। इसी तरह नॉर्थ-ईस्ट में हर महीने दो लाख टन चीनी की खपत होती है। कोलकाता और नॉर्थ-ईस्ट के राज्य पूरी तरह से महाराष्ट्र से आने वाली चीनी पर निर्भर हैं।
जनवरी और फरवरी के महीनों में चीनी का उत्पादन अपने चरम पर होता है, लेकिन इस दौरान इंपोर्टेड कच्ची चीनी भी हल्दिया पोर्ट पर कम आई है। इसकी वजह साफ है, कीमतों में अंतर के चलते इंपोर्टर्स भी चीनी मंगाने से डर रहे हैं। हालांकि सबसे बड़ी खामी खाद्य मंत्रालय की है। कुछ महीनों पहले जमाखोरी पर लगाम लगाने के लिए कुछ राज्यों ने अपने यहां स्टॉक लिमिट लागू की थी, लेकिन उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि देश में कुल चीनी का वन बाई फोर्थ पार्ट उत्पादन करने वाले महाराष्ट्र और यूपी से इसकी सही और जरूरी सप्लाई तय की जाए, ताकि देश भर के लोगों को सस्ते रेट पर चीनी मिल सके।
सिर्फ एक महीने का कोटा
सरकारी गोदामो में इस समय सिर्फ एक महीने की शक्कर बाकी है, जिससे आने वाले दिनों में शक्कर की किल्लत के अलावा इसकी कीमतों में भी और इजाफा हो सकता है। यह पहला मौका है कि चीनी के स्टॉक में सिर्फ एक महीने का कोटा है, क्योंकि इससे पहले स्टॉक में तीन महीने की चीनी रखी जाती थी। चीनी के प्रोडक्शन के लिए उपयुक्त महीनों के दौरान महाराष्ट्र में पहले के साल की तुलना में साठ हजार टन कम प्रोडक्शन हुआ है, जबकि यूपी में 10 हजार टन कम प्रोडक्शन हुआ। [जागरणडॉटकाम]
मंगलवार, 12 जनवरी 2010
वेब की दुनिया में दोस्तों की खरीद-बिक्री षुरू
लंदन। अभी तक तो लोग कामुक बातें करने के लिए 'दोस्त' बनाते थे और इसके लिए टेलीफोन लाइनों और अंतरराष्ट्रीय वेबसाइटों पर पैसा खर्च करते थे। लेकिन अब बात सामान्य दोस्तों की लंबी सूची रखने के फैशन तक आ गई है। ..और लोग इसके लिए धन देने में नहीं हिचकिचा रहे।सोशल नेटवर्किंग साइट पर खुद को लोकप्रिय दिखाने का यह नया हथकंडा है। लोकप्रियता पाने और अकेलापन दूर करने के लिए ब्रिटेन वासी आनलाइन दोस्तों की खूब खरीद फरोख्त कर रहे हैं। ट्विटर और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर एक हजार लोगों का संपर्क पाने के लिए लोग बेहिचक 125 पाउंड [करीब नौ हजार रुपये] खर्च कर रहे हैं।ऐसे लोगों की सूची को बेचने का काम करने वाली कंपनी यूसोशल की रिपोर्ट के मुताबिक क्रिसमस और नए साल के अवसर पर भारी संख्या में लोगों ने उससे संपर्क साधा। पैसा देकर दोस्त पाने वाले, 24 वर्षीय बास लियान के अनुसार, 'चैट करने के लिए लोग दोस्तों की सूची खरीद रहे हैं, ताकि वह अकेलापन दूर कर सकें। अगर आप लोकप्रिय नहीं होंगे, तो इन साइट पर आपको कोई पूछेगा नहीं।'आस्ट्रेलिया में इस तरह की खरीददारी पर रोक लगाने के लिए फेसबुक के वकील ने इस योजना को बंद कराने की कोशिश की थी। उनका कहना है इससे आस्ट्रेलियाई नियम और कानूनों का उल्लंघन होता है।
सोमवार, 11 जनवरी 2010
सफलता:;'अस्त्र' मिसाइल का सफल परीक्षण
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बी एस एन एल उपलब्ध कराएगी अमरनाथ गुफा में मोबाइल सुविधा

रविवार, 10 जनवरी 2010
शिक्षा में सुधार के लिए अब कानून आवश्यक -सिब्बल

शनिवार, 9 जनवरी 2010
मुंबई में इमारत का एक हिस्सा गिरा
मेरे बारे मेंsamay sapeksh
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ब्लॉग आर्काइव
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2010
(46)
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फ़रवरी
(9)
- समय सापेक्ष का फरवरी अंक प्रकाशित हो चुका है
- पूना में आतंकी हमला 9 मरे ५० घायल
- मथुरा में इंदिरा आवासों को अपात्रो को दिया
- मथुरा में लगातार अपराधों में वृद्धि से आतंकित आम जन
- मथुरा में यमुना प्रदूषण मुक्ति कि पोल खुली
- १० लाख का गुटखा खा जाते हैं ब्रजवासी
- बाघ और उसकी प्रजाति को बचाना होगा.
- पुलिस कि हिरासत से कैदी भागा
- अब श्रद्धालुओं को पैदल ही मंदिर तक जाना होगा।
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►
जनवरी
(32)
- लापरवाही के चलते मथुरा में 9 सिपाही निलंबित
- प्रति व्यक्ति आय ४१ हज़ार हुई
- कल बेहद खूबसूरत नजर आएगा मंगल
- मी लार्ड के लिए क्या है कानून
- अमर के बाद की सपा का खाका तैयार
- डेरा सच्चा सौदा की सार्थक पहल :यौनकर्मियों से विवा...
- नेताजी के बारे में कम्युनिस्टों का मूल्यांकन गलत
- पैसा और रसूख हो तो पढ़ाई का धंधा सबसे चोखा
- तंत्र के गण-अधिकार को बनाया हथियार, चमत्कार
- मायावती ने कहा- पवार को हटाओ, अन्यथा
- इजहारे इश्क दिवस 'वसंत पंचमी'
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फ़रवरी
(9)