सोमवार, 14 दिसंबर 2009

पचास साल में पत्नियों की जगह लेंगी मशीनें


-मधुसूदन आनंद जबसे मैंने पढ़ा है कि अगले 50 वर्षों में पुरुष कृत्रिम पत्नी के साथ रहने लगेंगे, मैं स्तब्ध हूँ। यह बात कृत्रिम मेधा के लिए 2009 का लोएबनर पुरस्कार जीतने वाले डेविड लेवी ने कही है जिसे 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने प्रकाशित किया है। लेवी का कहना है कि इस दौरान कम्प्यूटर मॉडलों के जरिए ऐसी कृत्रिम बुद्धि का विकास कर लिया जाएगा कि सब कुछ वास्तविक-सा लगने लगेगा और पुरुष कृत्रिम पत्नी से शादी रचाने लगेंगे। लेकिन सोनी के रोबोट-कुत्ते 'एबो' के लिए कृत्रिम मस्तिष्क बनाने वाले वैज्ञानिक फ्रेडरिक काप्लान लेवी के विचार से सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं कि बेहद नफीस सेक्स-रोबोट जरूर निकट भविष्य में उपलब्ध होंगे, लेकिन वे सचमुच के आदमियों या औरतों की जगह नहीं ले सकते। मनुष्य और मशीन का आपस में इस तरह का मेल-मिलाप बेशक अपने आपमें एक दिलचस्प घटना होगी, लेकिन इसमें मानवीय-ऊष्मा नहीं होगी। हो ही नहीं सकती।मैं अब भी स्तब्ध हूँ और सोच रहा हूँ कि हजारों वर्षों के घात-प्रतिघातों के बाद बने मनुष्य के दिमाग में इतना कूड़ा, गंदगी और विकृति कैसे पैदा हो गई है, जो इस तरह की बातें न केवल सोची जा रही हैं बल्कि उन्हें संभव और साकार भी बनाया जा रहा है। यह एक ऐसे खतरनाक दिमाग की कल्पना है, जिसके लिए स्त्री या पत्नी का अर्थ है-चाय-कॉफी बनाने वाली, सिगरेट सुलगाकर देने वाली, शराब परोसने वाली, कपड़े धोने और स्त्री करने वाली, बूट पॉलिश करने वाली, पौधों में पानी देने वाली, झाड़पोंछ करने वाली, बर्तन साफ करने वाली, खाना बनाने और उसे मेज पर सजाने वाली और बिस्तर बनाने और उसे गर्म करने वाली एक चलती-फिरती मशीन।एक ऐसी मशीन जो आदमी का हर सही, गलत, अच्छा-बुरा हुक्म बजा लाए। आदमी की सोच पहले भी ऐसी थी। योरप और अमेरिका में स्त्री-मुक्ति के लंबे आंदोलन के बाद किसी तरह औरतों में जागरुकता आई। चीन में एक ऐसा राजा भी हुआ है जिसके शयन कक्ष में हर रात एक नई और वस्त्रहीन स्त्री को भेजा जाता था। राजा के लिए उस स्त्री का न कोई नाम था, न वंश, न परिवार और न पता-ठिकाना। राजा को रोजाना आमोद-प्रमोद के लिए एक शरीर चाहिए था। शरीर नहीं, एक मशीन! उन्होंने आदमी से बराबर का हक माँगा और जब नहीं मिला तो जबर्दस्ती छीन लिया। फिर भी असुरक्षा, भय और प्रलोभन के जरिए मर्द, औरत के शरीर पर राज करता रहा, उसे हर पल मनुष्य से वस्तु बनाता रहा और 'तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त' कहकर उसकी गरिमा को मिटाता रहा। कुछ रोशनखयाल लोगों ने स्त्री को बेशक बराबरी और आदर का दर्जा दिया, लेकिन ज्यादातर समाजों में स्त्री का दर्जा आदमी से नीचे ही रहा है। जब हम छोटी-छोटी बच्चियों ही नहीं, बुजुर्ग औरतों के साथ भी बलात्कार के समाचार पढ़ते हैं तो मन गहरी जुगुप्सा से भर उठता है। मनुष्य ने पाप करने के लिए ही स्त्री को वेश्या बनाया और कोई भी समाज इस वेश्यावृत्ति को आज तक रोक नहीं पाया है। स्त्री के पक्ष में नैतिक आवाज उठाते हुए हमारे सुप्रीम कोर्ट को भी सरकार से कहना पड़ा है कि अगर वेश्यावृत्ति को रोक नहीं सकते तो उसे वैध ही घोषित कर दो ताकि नरक में रह रही वेश्याओं के कुछ तो मानवाधिकार हों! मर्द और औरत के बीच का संबंध कुदरती है। मनुष्य चूँकि सभ्य है, उसे चूँकि संस्कार और समझ मिली है, अच्छे-बुरे का विवेक मिला है, इसलिए उसने विवाह संस्था के जरिए इस संबंध को संस्थागत स्वरूप दिया लेकिन इसके बावजूद परस्त्रीगमन नहीं रुका। वेश्यावृत्ति नहीं रुकी, बहुविवाह प्रथा नहीं रुकी। क्यों? शायद इसलिए कि मनुष्य की नजर में स्त्री मजा देने वाली चीज बनी रही। हमारे राजाओं के रनवास में इतनी रानियाँ और बादशाहों के हरम में इतनी औरतें आखिर क्यों होती थीं? राजा जब चढ़ाई करते थे तो उसके सैनिक निरीह औरतों पर क्यों टूट पड़ते थे? हमारा मानवीय इतिहास हर काल में औरतों पर हुए अत्याचार से भरा पड़ा है।

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