मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

अमेरिका में आयुर्वेद दवाओं के प्रति कुप्रचार


मनोज वर्मा. अमेरिका में चिकित्सकों और दवा निर्माताओं के एक वर्ग ने आयुर्वेद दवाओं के प्रति कुप्रचार छेड़ रखा है। इससे प्रभावित होकर अमेरिका के खाद्य एवं औषध प्रशासन (यूएसएफडीए) ने अपने नागरिकों को आयुर्वेद उत्पाद के इस्तेमाल में सावधानी बरतने का आदेश जारी कर दिया। आरोप है कि भारत से आयातित की जा रही आयुर्वेदिक औषधियों में भारी मात्रा में विषाक्त पदार्थ और धातु मिली हुई हैं। आरोप अमेरिका में इंटरनेट के जरिए बेची जा रही कुछ औषधियों पर लगे हैं। इनमें ईजी स्लीम, एकांगवीर रस, अग्नितुंडी बटी, ब्राह्मी, एमोबिका, आरोग्यवर्धनी बटी, वाइटल लेडी, वरी फ्री, आयु-अर्थरी-टोन आदि शामिल हैं। ये उत्पाद भारत की नामचीन आयुर्वेद उत्पाद निर्माता कंपनियों से संबंधित हैं। इस बात का पता चलते ही भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने न केवल इसका खंडन किया बल्कि आरोपों के घेरे में आई कपंनियों के उत्पादों का विभिन्न प्रयोगशालाओं में परीक्षण भी करवाया। भारतीय चिकित्सक और आयुर्वेद दवा निर्माता बहुराष्ट्रीय कंपनियों की साजिश मानते हैं।असल में अमेरिकी खाद्य एवं औषध प्रशासन ने उक्त सावधानी वाला आदेश जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के एक लेख के आधार पर जारी किया। इसके पश्चात भारत सरकार ने प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रत्यायन प्रयोगशाला बोर्ड से अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के लेख में उल्लेखित उत्पादों के नमूनों के परीक्षण हेतु तत्काल कार्रवाई शुरू कर दी। केंद्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद ने भी धातु आधारित भस्मों की विषाक्तता का पता लगाने के लिए एक अध्ययन किया। यह अध्ययन भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान केंद्र, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद लखनऊ के सहयोग से किया गया। परीक्षण के पश्चात पाया गया कि निर्यात की गई किसी भी भारतीय जड़ी-बूटी व आयुर्वेद औषधियों में निहित विषाक्त और भारी धातुओं की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक नहीं थी। भारत निर्मित आयुर्वेदिक उत्पादों के 1/5 वाँ भाग का इंटरनेट पर वेबसाइट के माध्यम से बाजार में लाया जाता है। करीब दो दर्जन वेबसाइटों के जरिए आयुर्वेद औषधियों का कारोबार किया जा रहा है। जहाँ तक आयुर्वेदिक औषधियों में धातुओं और विषाक्त पदार्थों की उपयोगिता का सवाल है तो इन औषध योगों में धातुएँ अनिवार्य घटक के रूप में शामिल की जाती हैं।

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