शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

'मधुबाला - दर्द का सफर' का लोकार्पण


भड़ास4मीडिया पूरब की वीनस कहलाने वाली अप्रतिम सौंदर्य की मल्लिका ने भारतीय सिनेमा जगत पर न केवल अपने सौंदर्य का बल्कि अपने अभिनय की गहरी छाप छोड़ी लेकिन उन्हें न तो जीते जी और न ही उनके निधन के बाद वह सम्मान दिया गया जिसकी वह हकदार थीं। यह उदगार मधुबाला की जीवनी 'मधुबाला - दर्द का सफर' के लोकार्पण के मौके पर व्यक्त किया गया। कल देर शाम यहां फिल्म डिविजन के सभागार में लोकसभा सांसद राशिद अल्वी, फिल्म प्रभाग के निदेशक एवं सुप्रसिद्ध वृत्तचित्र निर्माता कुलदीप सिन्हा, दूरदर्शन के पूर्व निदेशक एवं फिल्म शोधकर्ता शरद दत्त, संगीत विशेशज्ञ डा. मुकेश गर्ग, बीते जमाने के मशहूर संगीत निर्देशक हुस्नलाल की सुपुत्री एवं गायिका प्रियम्बदा वशिष्ट तथा सखा संगठन के अध्यक्ष अमरजीत सिंह कोहली के सानिध्य में समारोह का आयोजन किया गया।
इस मौके पर पुस्तक की लेखिका सुशीला कुमारी ने कहा कि हालांकि मधुबाला को भारतीय सिनेमा का आइकन माना जाता है लेकिन मधुबाला को अपने जीवन में कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं मिला। हालांकि भारतीय सिनेमा की सबसे उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण फिल्म मुगले आजाम को मधुबाला के अविस्मरणीय अभिनय के लिये भी याद किया जाता है लेकिन उस फिल्म के लिये भी मधुबाला को कोई सम्मान नहीं मिला। श्री राशिद अल्वी ने मधुबाला की जीवनी के सामने लाने के प्रयास को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुये कहा कि राजनेताओं एवं शासकों की प्रसिद्धि का दौर बहुत छोटा होता है लेकिन कलाकारों एवं कलमकारों की लोकप्रियता काल खंड से परे होता है और मधुबाला जैसे कलाकार अपने जीवन में सम्मानों एवं पुरस्कारों से वंचित रहने के बाद भी सदियों तक लोगों के दिलों पर राज करते हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार से सम्मानित सुशीला कुमारी ने कहा कि मधुबाला की विस्मयकारी सुंदरता और उनकी बेइंतहा लोकप्रियता, उनके चेहरे से हरदम टपकती उनकी नटखट मुस्कान और शोखी को देखकर कोई भी सोच सकता है कि वह दुनिया को अपने पैरों में रखती होंगी। लेकिन सच्चाई तो यह है कि उनकी जिंदगी खुशियों और प्यार से कोसों दूर थी जिन्हें पाने के लिए उन्होंने मरते दम तक कोशिश की, लेकिन उन्हें दुख, तन्हाई और तिरस्कार के सिवा कुछ और नहीं मिला। मधुबाला का हमेशा हंसता हुआ चेहरा देखकर शायद ही किसी को आभास हो पाए कि इस हंसी के पीछे भयानक दर्द छिपा था।श्रीमती प्रियम्बदा वशिष्ट ने कहा कि मधुबाला के समय की तुलना में आज का समाज बहुत बदल गया है लेकिन आज भी मधुबाला की तरह बनना और दिखना ज्यादातर लड़कियों का सपना रहता है। अत्यंत निधन परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी मधुबाला ने लोकप्रियता का जो शिखर हासिल किया वह विलक्षण प्रतीत होता है। लेकिन इतना होने के बावजूद भी मधुबाला के जीवन के ज्यादातर पहलुओं से लोग अनजान हैं लेकिन इस पुस्तक में मधुबाला से जुड़े अनजाने पहलुओं की जानकारी मिलेगी।
गौरतलब है कि मुगले आजम, महल, हाफ टिकट, अमर, फागुन, चलती का नाम गाड़ी और हाबड़ा ब्रिज जैसी अनेक फिल्मों में अपने सौंदर्य और अभिनय का जलवा बिखेरने वाली मधुबाला ने महज 36 साल की उम्र में ही मौत को गले लगा लिया। मधुबाला बचपन से ही दिल में छेद की बीमारी से जूझती रहीं और इसी बीमारी के कारण अत्यंत कष्टप्रद स्थितियों में उनका निधन हो गया। हालांकि आज इस बीमारी का इलाज आसानी से होने लगा है लेकिन उस समय इसका कोई इलाज नहीं था। मधुबाला ने जीवन भर कश्टों एवं दर्द को सहते हुये जिस जिंदादिली के साथ वास्तविक जीवन एवं सिनेमा के जीवन को जिया वह बेमिसाल है।

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